नवग्रह और राशि रत्न
9 Planets and Gemstones
किसी जन्म कुंडली की प्रबलता जन्मकालीन ग्रहों की स्थिति, आपसी युति, शुभ अशुभ दृष्टि, और दशा -महादशा पर निर्भर करती है। जन्म समय कोई ग्रह नीच राशि, शत्रु राशि, नीच अथवा शत्रु नवमांश में उपस्थित हो तो उसके फल देने के सामर्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और और उक्त ग्रह की दशा महादशा में यह प्रभाव अधिक परिलक्षित होता है। ग्रह की दुर्बलता को न्यून करने हेतु तंत्र, मंत्र व राशि रत्नों (Tantra, Mantra and Gemstones) का उपयोग किया जाता है। मंत्रोचार के माध्यम से ग्रहों की प्रबलता सुनिश्चित करने में समय (महीनों या वर्ष) लगता है तथा तंत्र विद्या के परिणाम द्वैत प्रकृति के हो सकते हैं। अतः नवग्रहों को सामर्थ्य देने हेतु उचित नव राशि रत्नों का उपयोग न केवल लाभदायक रहता है बल्कि परिणाम भी शीघ्रता से नजर आते हैं। नवग्रहों की राशि रत्न उपयोगिता के आधार पर निम्नानुसार है।
सूर्य और माणिक्य (Sun and Ruby)
जातक की कुंडली में प्रबल सूर्य जीवन ऊर्जा, आत्मा, पिता, सफलता, विजय, नेतृत्व या प्रशानिक क्षमता व यश कारक होता है। यह पूर्व दिशा , सोने व तांबे का स्वामी होता है। जन्म कुंडली पीड़ित या दुर्बल सूर्य के जातक को अहंकारी, क्रोधी, महत्वाकांक्षी, आत्म केंद्रित आदि बनाता है। दुर्बल या पीड़ित सूर्य की दशा महादशा में पिता को कष्ट, पराजय,अपयश, सामाजिक प्रतिष्ठा में कमी, कार्य मे बाधा, व्यपार में असफ़लता आदि से सामना करना पड़ता है। दुर्बल सूर्य को बल देने हेतु माणिक्य रत्न सबसे महत्वपूर्ण है। कम से कम सवा पांच रत्ती वाले माणिक्य को रविवार के दिन सोने की अंगूठी में अनामिका अंगुली में धारण किया जाना चाहिए।
चंद्रमा और मोती (Moon and Pearl)
जन्म कुंडली में नवग्रहों में सूर्य के पश्चात सबसे महत्वपूर्ण चंद्रमा है जो जातक की मनोस्थिति, बुद्धि, भावुकता, माता, संवेदनशीलता, मानवीय गुणों इत्यादि का निर्धारण करता। जन्म कुंडली में अपनी राशि, मित्र राशि या शुभ नवमांश में स्थित व ग्रहों की दृष्टि इस युक्ति से मुक्त चंद्रमा जातक को शांत, स्थिर मानसिकता, सहनशील, भावुक व संवेदनशील, माता व गृहस्थान से निकटता, दयालु व निश्चल बनाता है। इसके विपरीत अशुभ ग्रहों से युक्त या नीच राशि मे स्थित चंद्रमा जातक को अशांत, व्याकुल, मनोविकारों से ग्रसित, क्रोधी, भीरु, निराश युक्त, अवसाद आदि उत्पन्न करता है। पीड़ित चंद्रमा को प्रबलता देने के लिए सफेद मोती को चांदी की अंगूठी में सोमवार के दिन अनामिका अंगुली में धारण करना सदैव उपयोगी रहता है।
मंगल और मूंगा (Mars and Coral)
वैदिक ज्योतिष में मंगल महत्वपूर्ण ग्रह है जोकि अग्नि कारक और नवग्रहों में मंगल को सेनापति माना गया है। कुंडली मे मंगल जातक के साहस, ऊर्जा, गतिशीलता, जीवन शक्ति और अनुशासन का कारक होता है तथा व्यक्ति के शरीर में खून,हड्डी, शारीरिक चोट या दुर्घटना द्योतक होता है। इसके अतिरिक्त मंगल भूमि, वाहन, आग्नेय अस्त्र का भी प्रतिनिधित्व करता है ।जातक की कुंडली में मंगल प्रबल होने पर व्यक्ति का साहसी ऊर्जावान और अनुशासित होता है और दुर्बल होने पर आलसी, ऊर्जाहीन और क्रोधी होता है। दुर्बल या नीच राशि मे उपस्थित मंगल को प्रबलता देने हेतु मंगलवार के दिन सोने की अंगूठी में मूगा का अनामिका अंगुली में धारण करना श्रेयकर रहता है।
बुध ग्रह और पन्ना (Mercury and Emerald)
वैदिक ज्योतिष में बुध ग्रह को युवा ग्रह माना गया है। मिथुन और कन्या इसकी स्वराशि है। बुध ग्रह कन्या राशि में उच्च का तथा मीन राशि में नीच का होता है। चंद्रमा के पश्चात बुध ग्रह किसी राशि में सबसे तीव्र गति से गोचर करता है। बुध ग्रह व्यक्ति की चपलता, वाकपटुता कुशाग्र बुद्धि, संवाद क्षमता, बुद्धिमता, संचार गुण इत्यादि का कारक होता है। जन्म कुंडली में बुध शुभ राशि या मित्र राशि में उपस्थित हो पर और साथ में शुभ ग्रहों द्वारा दृष्ट होने पर व्यक्ति को धन प्रबंधन, चातुर्य, मानसिक और तार्किक क्षमता, गणित विषय में निपुणता, व्यापार और वाणिज्य में सफल होता है। इसके विपरीत जातक की जन्म कुंडली अशुभ राशि या शत्रु राशि या अशुभ ग्रहों से दृष्ट होने पर व्यक्ति में वाणी दोष, संचार क्षमता और धन प्रबंधन में कमी, गणित विषय में कमजोर, दरिद्र जीवन व्यतीत करता है। दुर्बल बुध को प्रबलता देने हेतु तर्जनी अंगुली में सोने की अंगूठी में पन्ना धारण करना लाभदायक रहता है।
शुक्र और हीरा (Venus and Diamond)
वैदिक ज्योतिष परंपरा मैं शुक्र को वैभव और विलासिता का कारक माना गया है। शुक्र ग्रह अपनी राशि, उच्च राशि व मित्र राशि में स्थित होने पर धन, समृद्धि, आकर्षण, सुंदरता, प्रेम, पारिवारिक संबंध और जीवन में संतुष्टि को दर्शाते हैं। इसके अतिरिक्त प्रबल शुक्र संगीत, डिजाइनिंग, मीडिया, फैशन जगत, फिल्मी दुनिया, गहने, कीमती पत्थर, मेकअप, सुरुचिपूर्ण भोजन व आमोद प्रमोद का कारक होता है। इसके विपरीत शुक्र ग्रह के शत्रु राशि, नीच राशि व अशुभ ग्रहों के साथ युति होने पर प्रेम प्रसंग में विफलता, वैवाहिक जीवन में अड़चन, विलासिता में कमी, शारीरिक व मानसिक कष्ट, निम्न स्तरीय जीवन, पत्नी स्वास्थ्य में गिरावट, धन हानि, यौन अंगों में कमजोरी। दुर्बल शुक्र बल प्रदान करने के लिए स्त्रियों का मान सम्मान, घर में साफ सफाई, श्वेत वस्त्र के धारण करने के अतिरिक्त हीरा को अनामिका अंगूठी में धारण करना लाभदायक रहता है। किंतु आर्थिक परिस्थिति के कारण हीरा धारण करना संभव ना हो तो हीरे का विकल्प कुरंगी, दतला, तुरमली या सिम्मा भी धारण किया जा सकता है।
शनि और नीलम (Saturn and Sapphire)
वैदिक ज्योतिष में शनि को नवग्रहों में अति महत्वपूर्ण माना गया है। शनि न्याय प्रधान ग्रह जो व्यक्ति को उसके कर्म के अनुसार जीवन में फलित करता है। कुंभ और मकर इसकी स्वराशि है जिसमे स्थित होने पर अनुकूल परिणाम देता है। तुला राशि में यह उच्च का तथा मेष राशि में नीच का होता है। शनि मानव जीवन में प्रजा, न्याय, चिंतन, कष्ट, पीड़ा, आयु, सजा, गुलामी, दुःखद अनुभव, वृद्धावस्था आदि का कारक होता है। अपनी मंद गति के कारण अन्य ग्रह की अपेक्षा किसी राशि में शनि सर्वाधिक समय व्यतीत करता है जिसे शनि की ढैय्या कहते हैं (ढाई साल) और गोचर में चंद्र राशि पर इसके प्रभाव को शनि की साढ़ेसाती (साढ़े सात साल) कहते है। शनि ग्रह कठिन परिश्रम, तकनीकी ज्ञान, खनिज वस्तुएं, तेल इत्यादि का कारक होता है। जन्म कुंडली में शनि के शुभ होने पर व्यक्ति कर्मशील, धैर्यशील और न्याय प्रिय होता है। व्यक्ति को प्राप्त सफलता क्योंकि कर्म आधारित होती है अतः स्थाई होती है। किंतु दुर्बल शनि होने पर जीवन के व्यक्ति में निरंतर कष्ट, गुलामी, अत्यधिक शारीरिक श्रम, मानसिक वेदना रहती है। दुर्बल शनि को प्रबलता प्रदान करने किसी विद्वान ज्योतिषी की सलाह पर माध्यमिक अंगुली में चांदी की अंगूठी में नीलम धारण करना उपयोगी रहता है।
राहु और गोमेद (Rahu and Hessonite)
वैदिक ज्योतिष परंपरा में राहु और केतु जो कि छाया ग्रह है उनको नवग्रहों में सम्मिलित किया गया है। वास्तव में राहु और केतु पृथ्वी के चारों ओर सूर्य और चंद्रमा के गोचर पथ के प्रतिछेदन बिंदु हैं जिसमे राहु उतरी प्रतिछेदन बिंदु को दर्शाता है। चूंकि राहु एक छाया ग्रह अतः यह जातक में अपनी क्षमताओं के बारे में भ्रम उत्पन्न करता है। राहु के पास किसी भी राशि का स्वामित्व नहीं है किंतु ज्योतिष परंपरा में वृषभ राशि को इसकी उच्च और वृश्चिक को इसकी नीच राशि माना गया है (ज्योतिष शास्त्रों में मिथुन को उच्च राशि एवं धनु को नीच राशि माना गया है)। मित्र राशि में उपस्थित प्रबल राहु जातक को राजनीति के क्षेत्र में सफलता, प्रखर बुद्धि, अचानक धन लाभ, प्रसिद्धि दिलाता है किंतु राहु के शत्रु या नीच राशि में उपस्थित होने पर जातक मैं मानसिक भ्रम, अवसाद, भावनात्मक संतुलन, मतिभ्रम उत्पन्न करता है। नीच राहु के कारण जीवन में आकस्मिक दुर्घटना, धन हानि, जुए की प्रवृत्ति, सट्टेबाजी, नशा, मांस मदिरा आदि का सेवन, अधर्मी प्रवृत्ति का बनाता है। राहु के अशुभ प्रभाव को सीमित करने के लिए किसी विद्वान ज्योतिषी की सलाह पर मध्यमा अंगुली में गोमेद धारण करना लाभदायक रहता है।
केतु और लहसुनिया (Ketu and Cat’s Eye)
वैदिक ज्योतिष में केतु एक छाया ग्रह है जोकि पृथ्वी के चारों ओर चंद्रमा और सूर्य के गोचर पथ के दक्षिण प्रतिछैदन बिंदु को दर्शाता है। राहु के ही भांति केतु के पास किसी राशि का स्वामित्व नहीं है किंतु वृश्चिक इसकी उच्च राशि तथा वृषभ नीच राशि मानी गई है (कुछ ज्योतिष शास्त्रों में मिथुन को नीच राशि व धनु को उच्च राशि माना गया है)। अपने मित्र राशि या उच्च राशि में उपस्थित होने पर केतु जातक के जीवन में यश कीर्ति के शिखर पर ले जाता है। इसके अतिरिक्त मोक्ष और तांत्रिक विधा की ओर भी झुकाव उत्पन्न करता है। केतु जन्मकुंडली में जिस भाव में उपस्थित हो उससे संबंधित वस्तुओं और फलित का जातक को जीवन में संतुष्टि का भाव रहता है। किंतु नीच राशि अथवा शत्रु राशि में उपस्थित केतु जातक के जीवन में असमय अलगाव, वैराग्य, भौतिक सुखों से दूरी,पैरों में पीड़ा इत्यादि दुष्परिणाम उत्पन्न करता है। केतु के नकारात्मक प्रभावों को दूर करने के लिए मध्यमा अंगुली में किसी विद्वान ज्योतिषी की सलाह पर लहसुनिया धारण करना लाभप्रद रहता है।
जीवन मे विभिन्न क्षेत्रों मे आने वाली समस्याओं (विवाह, स्वास्थ्य, शिक्षा, रोजगार, व्यवसाय, धन, कुंडली मे दोष, राहु / केतु / शनि / मंगल महादशा, संतान, कानूनी पचड़े आदि) के ज्योतिषीय समाधान अथवा सलाह के लिए मेरे WhatsApp Number +91-9214983806 पर संपर्क कर सकते हैं। – ज्योतिष विशेषज्ञ डॉ. आलोक व्यास